Friday, October 5, 2012

लम्हे


वोह दर-ओ-दीवारे,वो ताख और मशाले,
रौशन थी तुम्हारे तस्सवुर से कभी 
चीखती है, घूरती है बेनूर सी पूछती है, यूही अक्सर मुझसे,
कहाँ गए वोह लम्हे, कहाँ छोड़ आये उनको
वो लम्हे वही है उसी मकां के कमरो में कही,
तडपते सिसकते अपनी चंद आखिरी सासो से रंजिश करते,
मै दफ़न कर आया उनको वही कहीं,
सुना है अफ्सानो से,गली से गुजरते हुए 
आती है आवाज़े  अब भी कभी-कभी,
दीवारे काली हो गयी है,
खुशबु तुम्हारी फिज़ाओ की अब भी है यही कही..।।