--------------------------- तुम -------------------------
तुम श्वेत अश्व पर सवार हो,
विचारो में एक उन्मुक्त नदी सी,
सूरज के सातवें घोड़े से ुछन्द विचारों सी
कुछ नयी, कुछ पुरानी यादों सी,
ना ठहरने वाले वक़्त सी,
सभी दिशाओं में भी ,
कभी यहाँ, कभी कहीं नहीं,
व्याप्त है, जो हर जगह, हर पल सी
हर विचार के तर्क सी ,
गुंजायमान किसी पुराने गीत सी ,
कभी लहरों सी ,
कभी साहिल सी,
कभी किनारें के पत्थरों सी,
जूझती खीजती,
अंत के उस अंत सी,
जीवन में रसधार सी,
श्वेत वर्ण पर सवार सी,
अमावस की उस रात सी,
दर्द की गुहार सी,
तुम शून्य हो, इकाई हो,
या अनंत में एक दहाई हो,
तुम वेग हो, आवेग हो,
कल्पना परिकल्पना के परे,
तुम एक सारगर्भित मौन हो,
तुम सन्नाटो में शोर हो,
तुम पूरब भी नहीं,
तुम पश्चिम भी नहीं,
तुम उत्तर, और दक्षिण भी नहीं ,
तुम दिशाओं में एक नयी दिशा ,
तुम समय के समीकरण पर झूलता एक आयाम हो,
तुम संदल की खुशबू, गीली मिट्टी की आरज़ू नहीं,
तुम फूलो सी नाज़ुक, कलियों सी कोमल नहीं,
तुम जीवन के शाश्वत सच का चरमोत्कर्ष हो,
तुम आदि का भी सृजन, और अंत के भी पार हो,
ना सुबह हो, ना शाम हो,
ना नीले गगन में इंद्रधनुष सामान हो,
तुम रंगो में एक नया रंग हो,
तुम कृष्णिका हो कभी या आदित्य का अभिमान हो
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