Sunday, May 9, 2021

 एक मुद्दत हुई है प्यार किए हुए,

तुम आज रुह पर फिर बारिश कर दो।


बहुत दूर निकल आए है चलते चलते,

तुम आवाज देकर रास्ता मुकम्मल कर दो।


बरसो से रिश्तो का बोझ उठा कर थक गए,

तुम आओ छूकर मुझे, जन्नत कर दो।


कभी सोचता हूं, कैसी होगी ज़िंदगी,तेरे जाने के बाद,

इस सोच से मुझे आज़ाद कर दो।


बहुत शोर है यहां, अपनी आवाज सुनाई नही देती,

तुम ख़ामोशी को एक नया एहसास कर दो।


एक बुझी हुई सी चिंगारी है दिल के कोने में कहीं,

तुम आओ और उसे आफताब कर दो।


एक ज़माना गुज़र गया है खुद को देखे हुए,

तुम आओ और घर को आइना कर दो।


कुछ अधूरे छिले हुए लफ्ज़,और मेरे चंद आधे शेर,

तुम आओ और इस काफ़िए को पूरा कर दो।   

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